Fourth Pillar Live
यूपी डेस्क: प्रसिद्ध रामकथाकार मोरारी बापू एक बार फिर सुर्खियों में हैं. इस बार मामला धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है. दरअसल, मोरारी बापू हाल ही में काशी पहुंचे थे, जहां उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन किए और राम कथा का आयोजन भी किया. लेकिन ये सब उस समय हुआ जब वे सूतक काल में थे. उनकी पत्नी के निधन के दो दिन बाद ही उन्होंने ये धार्मिक गतिविधियां कीं, जिससे बनारस के संतों और श्रद्धालुओं में गहरी नाराजगी देखी गई. संतों और धार्मिक संगठनों का कहना था कि किसी परिजन के निधन के बाद सूतक (शुद्धिकरण की अवधि) माना जाता है, जिसमें मंदिरों में प्रवेश और धार्मिक अनुष्ठान करना वर्जित होता है. इस परंपरा का उल्लंघन करने पर वाराणसी में मोरारी बापू के खिलाफ विरोध शुरू हो गया. अस्सी घाट और गोदौलिया इलाके में विरोध प्रदर्शन हुआ और पुतला दहन भी किया गया.
हालांकि, इस पूरे विवाद पर मोरारी बापू ने सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगते हुए कहा, “अगर किसी को बुरा लगा हो तो मैं क्षमा चाहता हूं.” उन्होंने यह भी कहा, “मैं छोटा हूं, आप सब बड़े हैं, बड़ों को क्षमा कर देना चाहिए.”
क्या है विवाद की जड़?
12 जून को मोरारी बापू की पत्नी का निधन हुआ था. इसके तुरंत बाद 14 जून को वे काशी पहुंचे और दर्शन-पूजन के साथ कथा भी की. इसी दौरान सूतक की बात उठी. संत समाज और कई लोगों का कहना है कि यह धार्मिक परंपराओं के खिलाफ है. इस मुद्दे पर अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती ने कड़ी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि मोरारी बापू ने धर्म को ‘धंधा’ बना दिया है. उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर बापू स्वयं को वैष्णव परंपरा का मानते हैं, तो उन्हें सूतक की मर्यादा का पालन करना चाहिए था.
विवाद बढ़ने पर मोरारी बापू ने व्यासपीठ से माफी मांगते हुए कहा कि वे वैष्णव परंपरा से जुड़े हैं, हम वैष्णव साधु हैं, जहां कथा और भजन में सूतक बाधक नहीं माने जाते. भगवान का भजन करना और कथा करना इसमें सुकून है. उन्होंने अपने शब्दों में कहा, “मैं सबका हूं और सब हमारे हैं. मैं किसी एक पंथ या विचारधारा का नहीं, बल्कि पूरे समाज का हूं.”
उन्होंने यह भी कहा, “यज्ञ में अगर ज्यादा लकड़ी डाल दी जाए तो आग तेज हो जाती है.” यानी उन्होंने संकेत दिया कि बात को जरूरत से ज्यादा बढ़ाया गया तो उसका परिणाम गंभीर हो सकता है. बापू की माफी के बाद विवाद थोड़ा शांत हुआ है, लेकिन संत समाज का एक वर्ग अब भी उनके इस कदम को सही नहीं मानता. वहीं उनके समर्थक कह रहे हैं कि बापू का इरादा किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था, वे केवल भक्ति और श्रद्धा में रमे रहते हैं.