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नई दिल्ली डेस्क: दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में महिला बैडमिंटन हाई परफॉर्मेंस कोच सुनीता अटवाल की रिटायरमेंट ने हर किसी को भावुक कर दिया. मानों बैडमिंटन की दुनिया में सन्नाटा पसर गया. देश को कई नेशनल और इंटरनेशनल खिलाड़ी देने वाली कोच की रिटायरमेंट पर हर किसी की आंखें नम हो गई. इस मौके पर कई नामी खिलाड़ी और अलग-अलग खेलों के कोच मौजूद रहे. स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की कोच सुनीता अटवाल ने अपने 38 साल के करियर में ऐसे खिलाड़ियों को प्लेटफार्म दिया जो आर्थिक रूप से कमजोर थे. उन्होंने अपनी कोचिंग में उन युवाओं को आगे बढ़ाया जो संसाधनों के अभाव में पीछे रह जाते.
इस मौके पर भारत की पूर्व अंतरराष्ट्रीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी मधुमिता बिष्ट ने कहा कि मैंने सुनीता अटवाल के साथ कई चैंपियनशिप में हिस्सा लिया. 1982 एशियन गेम्स के बाद जब मैंने इंदिरा गांधी स्टेडियम (IG Stadium) में खेलना शुरू किया, तभी से हमारी दोस्ती और भी गहरी होती गई. सुनीता एक बहुत ही हंसमुख, मिलनसार और मददगार स्वभाव की इंसान हैं. उनसे बात करके हमेशा एक सकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है.
सुनीता की सबसे खास बात यह है कि उनमें प्रतिभा को पहचानने की अद्भुत क्षमता है. उनके चुने हुए कई खिलाड़ी आज देशभर की कई एकेडमी में कोचिंग ले रहे हैं. उन्होंने अपने सभी ट्रेनीज को हमेशा सपोर्ट किया और उनकी मदद की है. जो भी बच्चा उनके पास खेलने आया, उन्होंने उसे प्रोत्साहित किया और आगे बढ़ने का हौसला दिया. सुनीता की सबसे खास बात यह रही है कि उन्होंने खिलाड़ियों को जमीनी स्तर (ग्रासरूट लेवल) से ट्रेन किया, जो किसी भी कोच के लिए सबसे मुश्किल और चुनौतीपूर्ण काम होता है. बैडमिंटन एक महंगा खेल है, जिसे हर कोई नहीं खेल सकता. लेकिन सुनीता ने आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की कई स्तरों पर मदद की और उन्हें एक अच्छे खिलाड़ी बनाकर आत्मनिर्भर बनाया. वो एक बेहतरीन कोच ही नहीं, बल्कि एक बेहद अच्छी इंसान भी हैं. उनकी सबसे खास बात है कि वो बहुत अनुशासित (disciplined) हैं.
इसके अलावा देश की पूर्व नंबर एक अंतरराष्ट्रीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी नीरू चौहान ने कहा कि यह जरूरी नहीं कि जो खेलेगा, वही खिलाड़ी बनेगा. खेल किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सुनीता मैम ने अपने कोचिंग करियर में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं. मुझे लगता है कि ऐसे शानदार और समर्पित कोच को सहेजकर रखने की जरूरत है. मौजूदा समय के अंडर-55 प्लस नेशनल और वर्ल्ड चैंपियन राजीव शर्मा ने कहा कि इस मौके पर मेरी कई खट्टी-मीठी यादें ताजा हो रही हैं. मुझे मैम का वही चेहरा याद आ रहा है. वो सीधी-सपाट बात करती थीं, कहती थीं, आ जाओ और खेलो.’ उन्होंने कभी किसी को भी कोर्ट में आने से नहीं रोका. उनके अंदर एक खास सकारात्मकता थी, जो सबको प्रेरित करती थी.