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नई दिल्ली डेस्क: आवारा कुत्तों और नसबंदी के बाद उन्हें आश्रय स्थलों में भेजने को लेकर मौजूदा वक्त में काफी बहस चल रही है. दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के काटने के मामले खास तौर पर बढ़ रहे हैं. डॉक्टरों का कहना है कि कुत्ते के द्वारा काटने की घटनाओं में बच्चे सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं. गुड़गांव के फोर्टिस हॉस्पिटल की डॉ. नेहा रस्तोगी के मुताबिक, 5 से 14 साल की उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि वे अक्सर अनजाने में कुत्तों को उकसाते हैं.
दिल्ली-NCR में कुत्तों के काटने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. यह घटनाक्रम शहरीकरण और कुत्तों की आबादी में बढ़ोतरी से जुड़ा है. डॉ. नेहा रस्तोगी ने बताया कि उनके ओपीडी (OPD) में हर महीने 25 से 35 कुत्ते से जुड़े केस आते हैं. यह तादाद चार-पांच साल पहले के मुकाबले दोगुनी है, जब यह आंकड़ा 10 से 15 मामले प्रति माह था. यह बढ़ोतरी राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुरूप है, जो देशभर में कुत्ते के काटने की घटनाओं में तेजी दिखाती है.
डॉ. रस्तोगी के मुताबिक, पिछले 12-15 साल में उन्होंने रेबीज के सिर्फ 2-3 मामले देखे हैं, जो उन लोगों में थे जिन्होंने सही समय पर टीका नहीं लगवाया था. उन्होंने बताया कि एक बार लक्षण विकसित होने पर रेबीज करीब 100% घातक होता है, इसलिए रोकथाम ही एकमात्र उपाय है. कुत्ते के काटने पर तुरंत घाव को 15 मिनट तक साबुन और पानी से धोना चाहिए, जिसके बाद टीकाकरण कराना जरूरी होता है. गंभीर मामलों में रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन भी दिया जाता है. साल 2023 में कुत्ते के काटने के 21 लाख मामलों की तुलना में 2024 में यह तादाद 37 लाख हो गई है. इस बढ़ोतरी से कुछ राज्यों में टीकों की आपूर्ति पर दबाव पड़ा है. बड़े अस्पतालों में तो स्टॉक उपलब्ध है, लेकिन छोटे स्वास्थ्य केंद्रों में कभी-कभी विशेष रूप से बच्चों के लिए रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन की कमी हो जाती है. यह स्थिति नीति निर्माताओं और पशु नियंत्रण अधिकारियों के लिए चिंता का विषय है.