एनकाउंटर, बिल्डर और अपराधी; कानपुर के 100 करोड़ वाले DSP की क्राइम कुंडली

Fourth Pillar Live

यूपी डेस्क: कानपुर में 100 करोड़ वाले DSP ऋषिकांत शुक्ला पर कार्रवाई की ने पुलिस महकमे में हलचल ला दी है. कानपुर में दस साल तक तैनात रहे इस अधिकारी की कुंडली जब खुली तो भ्रष्टाचार, धमकी और सांठगांठ के काले धागे एक-एक कर सामने आने लगे. एसआईटी जांच में अब तक करीब 100 करोड़ रुपये की संपत्ति का खुलासा हुआ है, जो उनकी आधिकारिक आय से कई गुना ज्यादा है. जांच के दस्तावेज बताते हैं कि कानपुर की गलियों से लेकर राजधानी लखनऊ तक ऋषिकांत शुक्ला ने ऐसा नेटवर्क बिछाया था, जिसके जाल में बिल्डर, व्यापारी, अपराधी और राजनीतिक रसूखदार सभी फंसे थे. कानपुर में अपनी तैनाती के दौरान शुक्ला ने खुद को एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर पेश किया. यही छवि बाद में उसकी कमाई का सबसे बड़ा हथियार बनी.

पीड़ितों के मुताबिक, ऋषिकांत शुक्ला अक्सर एनकाउंटर में उड़वा दूंगा जैसे शब्दों से डर पैदा करते और इसी भय के सहारे लोगों से संपत्तियां अपने नाम कराते थे. जांच से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि ऋषिकांत कानूनी कार्रवाई के नाम पर फर्जी मुकदमे तैयार करवाता था, फिर उन्हीं मामलों को सुलझाने के एवज में करोड़ों रुपये वसूलता. मनोहर शुक्ला नाम के एक बिल्डर ने खुलासा किया कि उसने शुक्ला के साथ मिलकर एक जमीन खरीदी थी, जिसकी कीमत कुछ ही सालों में 60 से 70 करोड़ तक पहुंच गई. जब मनोहर ने अपने हिस्से की रकम चाही, तो ऋषिकांत ने पहले उसे सात करोड़ रुपये देने का प्रस्ताव दिया, लेकिन बाद में पिस्तौल दिखाकर एनकाउंटर की धमकी देते हुए साफ कहा कि अब कुछ नहीं मिलेगा. डरे-सहमे मनोहर को कानूनी मदद भी नहीं मिली क्योंकि थानों से लेकर दफ्तरों तक हर जगह शुक्ला की पकड़ थी. ऐसे कई मामले अब सामने आ रहे हैं, जिनमें लोगों ने डर के मारे अपनी जमीन, दुकान या मकान शुक्ला के इशारों पर छोड़ दिए. कई पीड़ित आज भी सामने आने से कतरा रहे हैं.

कानपुर के चर्चित वकील और भूमाफिया अखिलेश दुबे के साथ ऋषिकांत शुक्ला के संबंध किसी रहस्य से कम नहीं. पुलिस सूत्रों का कहना है कि दुबे और शुक्ला के बीच वर्षों से आपसी लाभ का रिश्ता था. दुबे अपने प्रभाव और लॉ नेटवर्क से लोगों को फंसाता, जबकि शुक्ला पुलिसिया ताकत से उन फर्जी मामलों को कानूनी जामा पहनाता. एसआईटी की रिपोर्ट में दर्ज है कि दोनों ने मिलकर कई निर्दोष लोगों को झूठे मुकदमों में फंसाया, खासकर जमीन विवादों में. कई केसों में देखा गया कि जिन पर रेप या रंगदारी जैसे मुकदमे दर्ज हुए, उनके नाम पर वही जमीन बाद में शुक्ला या दुबे की कंपनी के नाम ट्रांसफर हो गई. दरअसल, शुक्ला की तैनाती वाले थानों में दुबे का खास दखल था. जांच में खुलासा हुआ कि अखिलेश दुबे की कंपनी में शुक्ला की पत्नी प्रभा शुक्ला बतौर पार्टनर दर्ज हैं. यह कंपनी रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन से जुड़ा कारोबार करती थी, जिसके जरिए काली कमाई को सफेद में बदलने का खेल चलता रहा.

एसआईटी ने जब ऋषिकांत शुक्ला की संपत्तियों की छानबीन की, तो पता चला कि उनकी पत्नी का नाम कानपुर की एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी में दर्ज है. इस कंपनी के दूसरे पार्टनर भी पुलिस के दो अधिकारी थे, जो कानपुर में लंबे समय तक तैनात रहे. तीनों की मिलीभगत से कंपनी ने कुछ ही सालों में करोड़ों के प्रोजेक्ट खड़े किए. आरोप है कि शुक्ला और उनके साथियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए जमीनों की रजिस्ट्री, NOC और सरकारी मंजूरियों में खेल किया. कई बार जमीनों को जबरन कब्जा कर कम कीमत दिखाकर रजिस्ट्री करवाई जाती थी, फिर कुछ महीनों बाद वही जमीन ऊंचे दाम पर बेच दी जाती. एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि ऋषिकांत की पूरी व्यवस्था फिल्मी अंदाज में चलती थी ऊपर से सख्त अधिकारी, अंदर से कारोबारी.

ऋषिकांत शुक्ला पर कानपुर में रहते हुए कई शिकायतें आई, लेकिन हर बार जांच फाइलों में दबा दी गई. कारण राजनीतिक पहुंच और नेताओं से करीबी संबंध. साल 2024 में उनके बेटे की शादी का आयोजन इसका सबसे बड़ा उदाहरण माना जा रहा है. कानपुर के एक लग्जरी रिजॉर्ट में हुई शादी में जिले के सीनियर अधिकारी, विधायक, यहां तक कि कुछ सांसद भी मौजूद थे. रिपोर्ट के मुताबिक, उस आयोजन में जिस अंदाज में शुक्ला ने करोड़ों रुपये खर्च किए, उसने पुलिस और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा छेड़ दी थी. बावजूद इसके, किसी ने जांच की मांग नहीं की. राजनीतिक संरक्षण के चलते शुक्ला का ट्रांसफर तो हुआ, लेकिन जांच कभी आगे नहीं बढ़ी. यह सिलसिला तब टूटा जब अखिलेश दुबे के गिरोह पर शिकंजा कसना शुरू हुआ और दुबे के करीबी अधिकारियों के नाम सामने आने लगे.

एसआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, ऋषिकांत शुक्ला और उनके परिवार के नाम पर 12 स्थानों पर 92 करोड़ रुपये की संपत्ति का पता चला है. इनमें लखनऊ, कानपुर, फतेहपुर, इटावा और मैनपुरी में जमीनें, आलीशान मकान, लग्जरी गाड़ियां और फ्लैट शामिल हैं. कई संपत्तियां अभी तक एसआईटी के कब्जे में नहीं आई हैं, क्योंकि वे रिश्तेदारों और दोस्तों के नाम पर खरीदी गई. जांच में पाया गया कि संपत्ति की खरीद में शुक्ला के PAN कार्ड और बैंक खातों का सीधा इस्तेमाल हुआ है. कई बार वे कैश डील में जमीन खरीदते और बाद में फर्जी दस्तावेजों के जरिए उसे पत्नी या पार्टनर के नाम करा देते थे. कानपुर के अपराध जगत में ऋषिकांत का नाम एक डर की तरह लिया जाता था. कई छोटे अपराधी उनके इशारों पर काम करते थे. कोई विरोध करता तो झूठे केस में फंसा दिया जाता. इसी डर की वजह से शहर के कई बिल्डर, कारोबारी और भू-माफिया शुक्ला के नेटवर्क से बाहर नहीं निकल पाए. एसआईटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एनकाउंटर का डर ऋषिकांत शुक्ला का सबसे ताकतवर हथियार था. वह अपने रसूख और खौफ से कानून को मोड़ लेता था. अब जब जांच आगे बढ़ी है, तो कई पीड़ित खुलकर सामने आने लगे हैं. कई ने लिखित बयान दिए हैं कि किस तरह उनसे दबाव में जमीनें छीनी गई.

 

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