भारतीय भाषा के लिए हो बजट, भेदभाव नहीं; अखिलेश यादव

Fourth Pillar Live

यूपी डेस्क: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शनिवार को भारतीय भाषाओं को लेकर देश के कुछ राज्यों में चल रहे विवाद को लेकर बयान दिया है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी हमेशा से भारतीय भाषाओं के सम्मान की पक्षधर रही है. सभी भारतीय भाषाओं को समान सम्मान मिलना चाहिए और उत्तर प्रदेश सरकार को इनके संवर्धन के लिए विशेष बजट जारी करना चाहिए.

दरअसल, अखिलेश यादव की यह टिप्पणी तब आई है जब मुंबई के वर्ली में मराठी अस्मिता और हिंदी थोपने के मुद्दे को लेकर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई व महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) प्रमुख राज ठाकरे ने दो दशकों बाद एक मंच साझा किया. यह ‘विजय रैली’ भाजपा सरकार द्वारा हिंदी भाषा संबंधी प्रस्तावों को वापस लेने के फैसले के उपलक्ष्य में आयोजित की गई थी.

लखनऊ में अखिलेश यादव ने कहा, समाजवादी विचारधारा शुरू से ही भारतीय भाषाओं के पक्ष में रही है. हम हिंदी के भी समर्थक हैं, लेकिन इसके नाम पर अन्य भाषाओं के साथ भेदभाव स्वीकार नहीं किया जा सकता. आज तकनीक ने बहुत कुछ आसान बना दिया है. पहले जैसी भाषायी भेदभाव की स्थिति अब नहीं रही. लेकिन कुछ लोग अब भी राजनीतिक लाभ के लिए इस मुद्दे को उठा रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश में सभी भारतीय भाषाओं के लिए एक समर्पित बजट होना चाहिए. हम चाहते हैं कि जयप्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (JPNIC) में एक मंजिल मराठी भाषा के लिए, एक तमिल, एक कन्नड़ और दो मंजिल उर्दू के लिए दी जाएं. इससे यहां आने वाले लोग विभिन्न संस्कृतियों, रीति-रिवाजों, खानपान और परिधानों से परिचित हो सकेंगे. इसके लिए हर राज्य को सहयोग करना चाहिए और पर्याप्त बजट देना चाहिए.

अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश और मराठा समाज के ऐतिहासिक संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि कानपुर और बिठूर में आज भी मराठों से जुड़ी कहानियां और विरासत मौजूद हैं. उन्होंने बताया कि जिस संग्रहालय का नाम पहले मुगल म्यूजियम था, अब उसे छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से बनाया जा रहा है. उन्होंने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा, वे कहते हैं, ‘हिंदी और हिंदू’, लेकिन अगर यही भावना है तो फिर बाकी भारतीय भाषाओं को क्यों नजरअंदाज किया जाता है? हजारों करोड़ रुपये इन भाषाओं को बढ़ावा देने में खर्च होने चाहिए. कभी मराठी, कभी तमिल, कभी कन्नड़ इन सब से व्यापार, आपसी समझ और सम्मान बढ़ेगा.

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