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नई दिल्ली डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने देश में ‘डिजिटल अरेस्ट’ और ‘साइबर फ्रॉड’ की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता जताते हुए स्वतः संज्ञान लिया है. न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा, ‘अदालतों के नाम, मुहर और न्यायिक अधिकार का खुला दुरुपयोग न्याय व्यवस्था पर सीधा हमला है. नकली न्यायिक आदेशों की जालसाजी से जनता का विश्वास डगमगाता है और कानून का राज खतरे में पड़ जाता है. ऐसे अपराधों को सिर्फ साधारण साइबर क्राइम या धोखाधड़ी नहीं माना जा सकता.’ यह मामला हरियाणा के अंबाला की बुजुर्ग शशि सचदेवा (73) और उनके पति हरिश चंद्र सचदेवा की शिकायत पर दर्ज किया गया, जिन्हें सितंबर 2025 में जालसाजों ने सीबीआई अधिकारी बनकर फोन और वीडियो कॉल के जरिए ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर लिया था और उनसे 1.5 करोड़ रुपये ऐंठ लिए. ठगों ने व्हाट्सएप पर बुजुर्ग दंपति को सुप्रीम कोर्ट के नकली आदेश दिखाए, जिनमें जजों के जाली हस्ताक्षर थे. सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका के नाम पर इस तरह की धोखाधड़ी को ‘इस संस्था की गरिमा पर प्रत्यक्ष हमला’ करार दिया.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि यह अलग-थलग घटना नहीं है. पूरे देश में फैले इस आपराधिक गिरोह का पर्दाफाश करने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के समन्वित प्रयास जरूरी हैं. साइबर क्राइम और साइबर फ्रॉड की जांच के लिए स्पेशलाइज्ड यूनिट की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय, सीबीआई, अंबाला साइबर सेल और हरियाणा गृह विभाग को इस मामले में अपना जवाब और जांच की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है. इस मामले में 27 अक्टूबर को फिर सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का शीर्षक ‘इन रेः विक्टिम्स ऑफ डिजिटल अरेस्ट रिलेटेड टू फोर्ज्ड डॉक्यूमेंट्स’ रखा है. डिजिटल अरेस्ट की घटनाएं हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी हैं. इस तरह के साइबर क्राइम में खासकर बुजुर्गों को निशाना बनाया जा रहा है. इसमें ठग पुलिस अफसर, सीबीआई अधिकारी या जज बनकर वीडियो कॉल पर लोगों को डराते हैं और उनसे पैसे वसूलते हैं. शशि और हरिश सचदेवा के मामले में जालसाजों ने पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना के नाम पर सुप्रीम कोर्ट का नकली आदेश बनाया था. ये बुजुर्ग दंपति ठगों की जाल में फंस गए और 1.5 करोड़ रुपये गंवा बैठे. सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार से कड़े कदम उठाने की मांग की है.